यहाँ कौन है अपना, कौन पराया l
  अब तक मैं ये समझ ना पाया ll
  जिस को मैंने समझा अपनाl
  उसने  तोड़ा  मेरा सपना ll
जिसे अपने दिल का हाल सुनाया l
  उसने  मेरा मज़ाक  बनाया ll
  समझा जिसको मैंने पराया l
  उसने मेरा साथ निभाया ll
पराये यहाँ अपने बन जाते है l
  अपने भी बेगाने हो जाते है ll
  आईना सिर्फ हमें चेहरा दिखाता है l
  किसी के मन को समझ नहीं पाता है ll
काश ! मुझे ऐसा आईना मिल जाता l
  जिससे मैं उस मन को समझ पाता ll
  मन की इन गहराईयों को तो जान लेता l
  और अपने -परायों को तो पहचान लेता ll
फिर सोचता हु अच्छा है ………………
  नहीं है ऐसा कोई आईना मेरे पास l
  सिर्फ , अपने तो नज़र आते है आस -पास ll
  यदि इस आईने से , मन को समझ जाता l
  शायद ! अपनों से ज्यादा , परायों को पाता ll 

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