शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

अपने-पराये

यहाँ कौन है अपना, कौन पराया l
अब तक मैं ये समझ ना पाया ll
जिस को मैंने समझा अपनाl
उसने तोड़ा मेरा सपना ll

जिसे अपने दिल का हाल सुनाया l
उसने मेरा मज़ाक बनाया ll
समझा जिसको मैंने पराया l
उसने मेरा साथ निभाया ll

पराये यहाँ अपने बन जाते है l
अपने भी बेगाने हो जाते है ll
आईना सिर्फ हमें चेहरा दिखाता है l
किसी के मन को समझ नहीं पाता है ll

काश ! मुझे ऐसा आईना मिल जाता l
जिससे मैं उस मन को समझ पाता ll
मन की इन गहराईयों को तो जान लेता l
और अपने -परायों को तो पहचान लेता ll

फिर सोचता हु अच्छा है ………………
नहीं है ऐसा कोई आईना मेरे पास l
सिर्फ , अपने तो नज़र आते है आस -पास ll
यदि इस आईने से , मन को समझ जाता l
शायद ! अपनों से ज्यादा , परायों को पाता ll

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