शनिवार, 11 जुलाई 2015

जीवन चक्र

जीवन चक्र

साँसों के कलरव में पलता बढ़ता जाता है जीवन
साँसों के कण कण से हरपल सजता जाता है जीवन

साँसों की पंखुडियाँ मिलकर
फूलों को है गुँथती जाती
और महक की गोदी पाकर
कली कली भी खिलती जाती

कोमल साँसों की गोदी में पलता बढ़ता है बचपन
पूछो तो सबजन कहते हैं कितना भोला है बचपन

साँसों के ये छौने लेकिन
मृदुता अपनी खो देते हैं
कुछ आहों में परिणित होते
बचपन अपना खो देते हैं

साँसों की हर क्यारी में तब पनपा करता है यौवन
नटखट बचपन छोड़ कैंचुली पा जाता है नव यौवन

ठौर-ठिकाना छोड़ भागता
मद में डूबा अल्हड़ यौवन
सीनाजोरी चोर चपाटी
सब सिखलाता है यह यौवन

साँसों का भी सौदा करता मदिरा पीकर जब यौवन
कुछ साँसों तब भी कहती हैं होश सँभालो हे जीवन

मत सूँघो उन फूलों को जो
सजते पूजा की थाली में
मत मसलो उन कलियों को जो
खिलने आतुर हैं क्यारी में

साँसों का सम्मान करो तो उज्वल होता है जीवन
पल भर जीकर पल में मरकर बस पछताता है यौवन

पछतावे की आँधी में तो
साँसें रुँध रुँध मर जाती हैं
और बुढ़ापा आ जाता है
जब साँसें थम थम जाती हैं

तब काँटो की क्यारी में उलझा तड़पा करता है जीवन
साँसें काँटों-सी चुभती हैं कुबड़ा जाता है जीवन

बचपन यौवन छोड़ बुढ़ापा
ले आता है बस रीतापन
संगी-साथी हँसी उड़ाते
नहीं जताते तब अपनापन

सोचा होता गर पहले तो क्यूँ पछताता यह जीवन
जन्म-मरण की चक्र-रीत भी खूब निभाता यह जीवन

करते गर सम्मान समय का
अपनापन गर जतला जाते
मुस्कानें सबके चहरे की
गर तुम हरदम खिलती रखते

पतझर पहले जैसा था वैसा ही रह जाता उपवन
जाते जाते भी साँसें जतलाती जाती अपनापन

सब दौड़ते काँधा देने
लेकर भरा कलश आँसू का
और याद सीने में सजकर
मान बढ़ाती हर आँसू का

सबकी आँखें बिखल बिखलकर करती जाती तब वंदन
यादों के झूलों पर रमता अमर बना रहता जीवन।

नव सासों पर फुदक फुदककर बढ़ता जाता यह जीवन
साँसों के कण कण से हरपल सजता जाता यह जीवन

—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे

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