अपनी भी कुछ ख्वाइशें, कुछ सपने थे,
  कुछ तस्वीरों में हमें भी रंग भरने थे,
  न जाने क्यूँ, यूँ ही डरता गया,
  मैं रुका रहा और वक्त आगे चलता गया….
ठहरी हुई जिंदगी को किसी मंजिल की तलाश थी,
  कोई हमसफर बनेगा इस बात की आस थी,
  मिला, रुका, साथ रहा, फिर आगे निकल गया,
  मैं रुका रहा और वक्त आगे चलता गया….
कभी सोचा अपनी किस्मत से मिल आऊँ,
  गुलशन में फैली खुशबू को मैं भी पाऊँ,
  बस उसी पल का इंतजार करता गया,
  मैं रुका रहा और वक्त आगे चलता गया….
रुके रुके भी थक जाऊँगा एक दिन,
  जानता हूँ वक्त से हार जाऊँगा एक दिन
  जो किस्मत में न हो, उसे कैसे पाऊँगा
  अपने ख्वाबों से अपनी दुनिया कैसे सजाऊँगा
  यही सवाल अपने आप से पूछता रहा,
  मैं रुका रहा और वक्त आगे चलता गया….

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