बुधवार, 22 जुलाई 2015

सूरज और ओस

सुबह जब सूरज निकलता है,
अपनी तपिश के साथ..

ओस फिर उड़ जाती है होके फनाह,
लगता है मिट जाता है वजूद उसका,
जाने वजूद मिटता है या,
सिद्दत से उड़ती है,
अपने महबूब की बाहों मे जाने को,
समझ ना सका मैं,
जाने क्या रिश्ता है,
ओस का सूरज के साथ,
कल तूने भी की थी,
बात मुझे छोड़ जाने की….आज़ाद

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