तिनको ने तुके जोड़ी
  पत्तो पे नशा छाया
  शायद किसी गजल ने  फिर अपना घोसला बनाया
  कुछ  दूर बज रही थी जो मंजरी लयो की
  झुक कर उसी का चेहरा  माथे के पास आया
  शब्दों को फिर सुंघा मैंने
  अर्थो को फिर चूमा मैंने
  छन्दो की सीपियों को फिर अपने हाथो पर उठाया मैंने
  रफ़्तार से सहम कर छप्पर में जो छिप रही थी
  वापस बुला के उस संवेदना को लाया मैंने
  गलियो में रौशनी है
  सड़के भी अब चुपचाप है
  अच्छे सभी पडोसी
  मन में घर बसाये है
  खुद को बहुत सवारा  मैंने
  फिर जोर से पुकारा मैंने
  तब ही इक पंछियो का टोला
  आँगन में मेरे उतर आया
  पंखो पे उनके मैं भी अपना नाम पता लिख दूँ
  इस लोभ ने मुझे बहुत छकाया  
कनक श्रीवास्तवा
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