गुरुवार, 30 जुलाई 2015

शब्द

जब तक शब्द नहीं मिलते
कविताये लिखी नहीं जाती
बेवजह कलम को कागज़ पर फेरने से क्या होगा
चिंदी चिंदी करके बटोरता हूँ
मेहनत से पुराने लम्हों को
करने को पहचान की कोशिश
उसमे छुपे हुए चेहरे को |
जब तक सलवटे नहीं मिटती
चेहरा पहचाने नहीं जाते
बेवजह उन लम्हों को घूरने से क्या होगा |
कितना खुश रहते है बच्चे
इनका कोई अतीत नहीं
बस्ता है जो ह्रदय में इनके वासनामय वह संगीत नहीं
जब तक उम्र नहीं होती
दुःख साथ नहीं आते
पर बेवजह बचपन का अभिनय करने से क्या होगा |

कनक श्रीवास्तवा

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