गुज़र गया वो वक़्त
  बिछड़ गयी वो राहे
  और छोड़कर ,तेरे सहारे को
  फिर चलने लगे हैं हम
  धीरे धीरे फिर जीने लगे हैं हम!!!!!
बेशक़ वो शरारत नहीं
  लबों पर, न रौनक़ वो
   आँखों पर,
  फिर भी बीते लम्हों में  खोकर
  फिर मुस्कुराने लगे हैं
  हम धीरे धीरे फिर जीने लगे हैं हम!!!!!
वो  लड़क्कपन  में
  खायी ठोकरें,
   वक्त बेवक्त  बेचैन साँसे,
  हमें सब कुछ सीखा गयी हमदम
   फिर कुछ लिखने लगे हैं हम,
   धीरे धीरे फिर जीने लगे हैं हम!!!!!!
  -Karan dev bahuguna-

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