बिना रौशनी के रातें का सफर अब कटता नहीं
  बिना मंजिल के ये दिन अब गुजरता नहीं
  शाम भी तो अपने आगोश में गम ही लेकर आती है
  दिल पर है कुछ ऐसा जख्म जो अब भरता नहीं
बेवजह यूं जिंदगी की खुशी किसने छीन ली
  जिंदा हैं मगर किसने ये हमारी जिंदगी छीन ली
  खामोश निगाहें अब खुद से ही ये सवाल करती हैं
  दिल तो है मगर किसने उसकी धड़कने छीन लीं
इंतजार करूं कि खोया हुआ कोई मुझे लौटा देगा
  चलता रहूं कि कोई मंजिल की राह दिखा देगा
  इन निगाहों को अब भी उसकी तलाश बाकी है
  जो दिल पर लगे मेरे हर जख्म को मिटा देगा

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