सोमवार, 27 जुलाई 2015

तलाश बाकी है

बिना रौशनी के रातें का सफर अब कटता नहीं
बिना मंजिल के ये दिन अब गुजरता नहीं
शाम भी तो अपने आगोश में गम ही लेकर आती है
दिल पर है कुछ ऐसा जख्म जो अब भरता नहीं

बेवजह यूं जिंदगी की खुशी किसने छीन ली
जिंदा हैं मगर किसने ये हमारी जिंदगी छीन ली
खामोश निगाहें अब खुद से ही ये सवाल करती हैं
दिल तो है मगर किसने उसकी धड़कने छीन लीं

इंतजार करूं कि खोया हुआ कोई मुझे लौटा देगा
चलता रहूं कि कोई मंजिल की राह दिखा देगा
इन निगाहों को अब भी उसकी तलाश बाकी है
जो दिल पर लगे मेरे हर जख्म को मिटा देगा

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