सोमवार, 3 अगस्त 2015

दस्तक

मन में करता रहता है दस्तक बार बार
कोई मेरे गीतों को अपने स्वर में ढालता बार बार
तुम ना सही मै ना सही
कोई तो सही आता रहता है यु ही
यह ख़याल मुझे बार बार |
मन में करता रहता है दस्तक बार बार
कोई मेरे गीतों को अपने स्वर में ढालता बार बार

मुझको है तुम्हारा ही ख्याल की
तुम गाओगे मेरे गीत अपने ताल पर
मैं क्यों तुमसे सवाल करू बार बार
कोई मेरे गीतों को अपने स्वर में ढालता बार बार

तुम ने आखिर दी है दस्तक
रात के इस अंतिम पहर पर
मैं भी इंतज़ार करता रहा हूँ
तेरे इस पुकार का
की तुम ही मेरे गीतों का ख्याल हो
मैं तुम्हारे स्वर का ताल हूँ |
ताल और ख्याल के इस मेल पर
बनेगा जो सरगम वह मेरे गीत है
गा उठेगा हर दिल झूम कर बार बार
आता रहता है यह ख्याल बार बार
कोई मेरे गीतों को अपने स्वर में ढालता बार बार |

कनक श्रीवास्तवा

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