शहीदों की कुर्बानी से हुई थी मेरी सगाई
आज़ाद हिन्द के संग मैंने शादी की रस्म निभाई
15/08/1947 से है भारत में बसेरा
स्वतंत्रता नाम है मेरा
सोचा था अपने हिन्द को ऐसे इंसान दूंगी
और हर देशवासी को इक नयी पहचान दूंगी
लगा था की जल्दी होगा उमीदों का सवेरा
स्वतंत्रता नाम है मेरा
लेकिन उमीदों का सवेरा ढलती शाम बन गया
शहीदों की शहादत मेरे ऊपर एहसान बन गया
खुदगर्जों की करनियों से फैला है चारों और अँधेरा
स्वतंत्रता नाम है मेरा
वक़्त बदला , दौर बदला और बदले इंसान
मेरी पहचान हिंदी भी अब हो गयी अंग्रेजी की गुलाम
नए युग की उलटी हवाओं ने मुझे है घेरा
स्वतंत्रता नाम है मेरा
आज़ाद हिन्द की दुल्हन हूँ मगर, विधवा सी महसूस कर रही हूँ
भक्षक बने, जो थे रक्षक ,उन्हींसे अपने को महफूज कर रही हूँ
अब तो हर दूसरा वासी नज़र आता है मुझे लुटेरा
स्वतंत्रता नाम है मेरा
हितेश कुमार शर्मा
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