बुधवार, 5 अगस्त 2015

आँख के मोती / गज़ल / महेश कुमार कुलदीप 'माही'

आँख के मोती पानी हो गए |

सब किस्से कहानी हो गए ||

दीवार एक खिंची आँगन में,

रिश्ते सब बेमानी हो गए ||

शहर बदले हालात बदले,

वो हमसे कोस कानी हो गए ||

दौलत का रंग भी अजब है,

चढ़ते ही अभिमानी हो गए ||

कोई कंगाल है महोब्बत में,

तो कोई राजा-रानी हो गए ||

‘माही’ रहा जमीं से जुड़कर,

लोग बड़े आसमानी हो गए ||

* कोस कानी – बहुत दूर हो जाना

:- महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
+918511037804

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