सोमवार, 10 अगस्त 2015

दर्शन दिये गीत के

दर्शन दिये गीत के

सुबह जगी तो स्वर्णिम स्वर में
शाम रागिनी बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई

तेरी कृतियाँ दिव्य स्वरों की
लहरों पर ये चुपचाप चलें
भँवरें सारी मिटकर बनकर
संचालित तेरे गीत करें

कलरव करते खगगण बिखरे
शाम वापसी बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई

ओस-कणों के दर्पण भी थे
तेरे दर्शन की आस भरे
पंखुरी के खुलने की ध्वनि भीे
मुखरित तेरे गीत करे

उठी प्रभाती तेरे सुर में
शाम सुरीली बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई

कुछ आशायें बैठ शाम से
तेरे दर्शन की आस लिये
जले प्रतीक्षा-दीप रात भर
विरहाग्नि का बस प्रकाश लिये

सुबह खुमारी लूट रही थी
शाम नशीली बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई

तू था रवि-रथ पर ही बैठा
जब मैं तेरे कुछ पास गया
मेरे धुंधले प्राण-नयन में
चकाचोंध ने तब वास किया

चहक रही थी सुबह हमारी
शाम उदासी बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई।
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे

00000

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here दर्शन दिये गीत के

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें