दर्शन दिये गीत के
सुबह जगी तो स्वर्णिम स्वर में
शाम रागिनी बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई
तेरी कृतियाँ दिव्य स्वरों की
लहरों पर ये चुपचाप चलें
भँवरें सारी मिटकर बनकर
संचालित तेरे गीत करें
कलरव करते खगगण बिखरे
शाम वापसी बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई
ओस-कणों के दर्पण भी थे
तेरे दर्शन की आस भरे
पंखुरी के खुलने की ध्वनि भीे
मुखरित तेरे गीत करे
उठी प्रभाती तेरे सुर में
शाम सुरीली बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई
कुछ आशायें बैठ शाम से
तेरे दर्शन की आस लिये
जले प्रतीक्षा-दीप रात भर
विरहाग्नि का बस प्रकाश लिये
सुबह खुमारी लूट रही थी
शाम नशीली बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई
तू था रवि-रथ पर ही बैठा
जब मैं तेरे कुछ पास गया
मेरे धुंधले प्राण-नयन में
चकाचोंध ने तब वास किया
चहक रही थी सुबह हमारी
शाम उदासी बन आई
दिन ने दर्शन दिये गीत के
रात आरती बन आई।
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे
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