सोमवार, 10 अगस्त 2015

ये गीत अगर होते घन सावन

ये गीत अगर होते घन सावन

ये गीत अगर होते घन सावन
मटमैला मन कर जाते पावन

झाँक मेघ के घूंघट से नित
होती प्रखरतम जीवन भोर
किलकारी भर उड़ता जाता
मन पपीहे का सुनकर शोर

थिरक-थिरक उठता हर मानव-मन
पाकर सुन्दर-सा स्वर्णिम जीवन
ये गीत अगर होते घन सावन
मटमैला मन कर जाते जीवन

गरज गरज कर, बरस बरस कर
करते अमराई-सा यौवन
कोयल जबतब मधुर कंठ से
कुहुक जगाती जाती तन मन

करते अंकित संगीत सृजन कर
ये गीत चित्त में चिंतन चुम्बन
ये गीत अगर होते घन सावन
मटमैला मन कर जाते पावन

जुगनू के से दीप जलाकर
हर रात दिवाली कर जााते
हर दिन भी होली से होते
गागर में सागर भर जाते

झर झर बहते अश्क नयन से तो
थम थम जाते सब तूफान सघन
ये गीत अगर होते घन सावन
मटमैला मन कर जाते पावन

राग, रंग, अलंकार, छंद से
बरस बरस सब घट भर जाते
काम, क्रोध, मद, द्वंद, द्वेष के
सब गढ़ तब पल में ढ़ह जाते

सत्गुण की चर्चा-वर्षा से नित
कलयुग पाता सतयुग-सा जीवन
ये गीत अगर होते घन सावन
मटमैला मन कर जाते पावन

होती निर्मल जल धारा-सी
चिन्तन रेखा इन गीतों की
चंचल चपल चेतना भी नित
ले लेती सुधि इन गीतों की

तृप्ति की स्वर-लहरियों से होती
खंडित नैया जीवन की पावन
ये गीत अगर होते घन सावन
मटमैला मन कर जाते पावन
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे

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