अभी भी याद आते हैं मुझे वो कमीने यार,
जिनके साथ कभी बिताए थे सात साल।हर बंदे की थी अलग श्रमता,
जिसके अनुसार करता था वो अपना धंधा।
यही तो है यारों #नवोदय की बात निराली,
जिससे पैदा होती है रोज़ एक नयी चिँगारी।
अब तो यारों वो होस्टल का समय भी बन गया है एक सपना,जिसमें किया था कभी कांङोँ का दौर शुरू हमने अपना।
क्या पराँठे बने,
क्या बल्ला घुमाया,’पिट्ठू’ की स्मैश नें तो साला,
मेरी उँगली को ही टेठी कर डाली।
संजू अंकल का ऊपर से चिल्लाना,
और कौच अंकल का अपने किस्से सुनाना,सब बन चुका है अब एक #सपना।.तभी ऐसा लगा मानो,
एक हवा का झोंका आया,और मुझे ऊठा कर बोला,
‘ज़िंदगी अभी बाकी है मेरे दोस्त।
ये तो बस शुरूआत है मेरे दोस्त।
इतिहास को यूँ पीछे मुड के ना देख,
ये तेरा दुख दुगना ही करेगा’
सोमवार, 10 अगस्त 2015
The Navodaya Times--'नवोदया एक सुनहरा सपना'
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