गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

मन मैली

मन मैली तो तू भी मैली है,
चाहे लाख स्नान कर ले गंगा.

चोरी, बेईमानी के कमाए धन से,
न मिलेगा पुण्य, चाहे लाख दे चन्दा.

कहते है लोग क्या है ईमानदारी ?
महंगाई की ज़माना है कम है तंखा.

सड़क गलि चकाचौंध है रौशनी से,
गरीब का घर है आज भी है अँधेरा.

गुनाहगार घूम रहे है होके उन्मुक्त
देश की कानून है आज अन्धा

हे ईश्वर ! क्यों चुप बैठे हो,
धर्म के नाम पे होते है दंगा.

पाप की घड़ा भर के छलक रही है,
फिर भी खुन के प्यासे है भेड़िया.

“दुष्यंत” संभल के रहना इंसानी सियारो से,
जाने कब दोस्त बनके दे देंगे धोखा.

@@ दुष्यंत पटेल @@

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