बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

लहर

लहर चली किनारों के उस पार जाने को,
छोड़ चली बूँद-बूँद के सहारे को,
बिखरा कर तल पर बने चारे को,
क्यों आतुर है एक एक बूँद,
जरे-जरे से टकरा कर वापिस आने को !

हवा के झोंको ने बदला है पानी का तेवर,
शांत स्वभाव था,
बन गया क्यों ये उफान सा,
क्यों आमादा है एक-एक बूँद पानी में ही मिल जाने को,
क्यों आतुर है एक एक बूँद,
जरे-जरे से टकरा कर वापिस आने को !

नरमी है मौसम में,
फिर क्यों ये आग उगलता पानी है,
शबनम और शोलों जैसी इनकी कहानी है,
मिट जाएगी हस्ती अपनापन पाने को,
क्यों आतुर है एक एक बूँद,
जरे-जरे से टकरा कर वापिस आने को !

चली बांध को लाँघ,
बनकर कहर,उगल कर जहर,
बनकर अजगर सब कुछ खा जाने को,
क्यों आतुर है एक एक बूँद,
जरे-जरे से टकरा कर वापिस आने को !

बस्ते थे जो लहरो के किनारों पर,
थी उनको भी आस इस पल की,
पानी-पानी में मिट जाने को,
क्यों आतुर है एक एक बूँद,
जरे-जरे से टकरा कर वापिस आने को !

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