बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

मन की उड़ान

‘मन की उड़ान’
चल के देख जरा सा,
सागर की गहराई की और,
सोच,निचे भी तो जिंदगी है,
है प्राण वहाँ भी,चाहे जीवों के लिए ही सही,
जिंदगी तो है,साँस है पानी में भी,
खो गई है रौशनी,
उन अंधेरो के साथ,
जो छाया से बने थे,
वो भी काले बादलों की ओट लिए,
मद मदन है,
उन्मुख की और,सजा है पर किस ओर,
ढूंढ ले और चल भलाई की ओर,
क्या पता जग जाये वो मुसाफिर,
जो कभी चला था क्षितिज की ओर,
मिल जायेगा तुझे भी साथी,
डूबी हुई नाव का मांझी,लिए तुझे साहिल के ओर,
मत देख आगे क्या है,
और मौसम का मिजाज कैसा है,
हुआ वक़्त अपना तो चला आएगा,
क्षितिज भी एक दिन खिंचा अपनी ओर,
टूट जाएगी हवा की जकड़न,
जो लिए थी तुझे आलस की ओर,
मत सोच के तू क्या था,
तू था,बस ये ही सोच,
चल पड़ा है एक नई उमंग लिए,
बजने लगी सांसे तरंग लिए साहिल की ओर,
बस मिलेगी ख़ुशी,
तू ढूंढेगा जिस ओर,
कुमुद खिलेंगे,
रंग-बिरंगी सुगंध लिए,
पंछी चहकेंगे बिन सवेर,
उडान भी होगी बिन पंख,
गुलाम भी हो जाएगी हवा भी,
लिए तुझे ऊंचाई की ओर,
तू है आज बारिश में पतंग,
पर मत समझना के छू पायेगी तुझे बूँद भी,
होंसला रखना बस उड़ते चले जाने का,
उडान होगी सफलता की ओर,
जीवन है जी लेने के लिए,
खुशियो के अरमानो के सौगात की ओर !

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