सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

अन्धेरा

रोशनी से घिरा -मैं
अन्धेरे में बैठा रहा!
देखता मैं रहा
लाखों तारे रहे जगमगा –
झिलमिल करते रहे –
चाहते थे -ना तम हो घना!
उन की लौ से सजा
नभ स्याही संजोए रहा!

रोशनी से घिरा -मैं
अन्धेरे में बैठा रहा –
देखता मैं रहा
एक इन्द्रधनुष था खिंचा
लिए आशा की किरण
सात रंगों से वह था सिंचा
रंगों से सजा -घन
घनघोर होता गया!

रोशनी से घिरा -मैं
अन्धेरे में बैठा रहा!
तारे हंसते रहे –
रंग संवरते रहे –
दीप जलते रहे –
पर मिटा ना सके
क्यूंकि तम था घना!

रोशनी से घिरा -मैं
अन्धेरे में बैठा रहा!

——बिमल
(बिमला ढिल्लन)

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here अन्धेरा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें