रोशनी से घिरा -मैं
  अन्धेरे में बैठा रहा!
  देखता मैं रहा
  लाखों तारे रहे जगमगा –
  झिलमिल करते रहे –
  चाहते थे -ना तम हो घना!
  उन की लौ से सजा
  नभ स्याही संजोए रहा!
रोशनी से घिरा -मैं
  अन्धेरे में बैठा रहा –
  देखता मैं रहा
  एक इन्द्रधनुष था खिंचा
  लिए आशा की किरण
  सात रंगों से वह था सिंचा
  रंगों से सजा -घन
  घनघोर होता गया!
रोशनी से घिरा -मैं
  अन्धेरे में बैठा रहा!
  तारे हंसते रहे –
  रंग संवरते रहे –
  दीप जलते रहे –
  पर मिटा ना सके
  क्यूंकि तम था घना!
रोशनी से घिरा -मैं
  अन्धेरे में बैठा रहा!
     ——बिमल
         (बिमला ढिल्लन) 

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