मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

नयी उलझन

है नयी उलझन यही
तुझे क्या बताऊ क्या नहीं
मेरे लिए जो है सही
शायद तेरे लिए हो नही
तुझे दिल से मानता हूँ
इतना कहाँ जनता हूँ
इन नैनो में क्या चल रहा
तेरे मन में क्या पल रहा
औरो से पूछने में रुसवाई है
आखिर दिल मैंने लगाई है
उसी दिन तुझे बता देता
दिल का भ्रम मिटा लेता
पहली बार देखा जब से
दो माह बीत गए तब से
अब जाके ये समझा हूँ
प्रीत सुलझी चीज नहीं है
सुलझाना हरगिज नहीं है
ये कुदरत की जजा है
उलझनों में ही मजा है
लो आज कह दी रही सही
तू नहीं तो कुछ नहीं
अब लगेगी एक अगन
दोनों तरफ नयी उलझन!!!

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