बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

*ख्वाहिश-पूरी या अधूरी*

यूँ कर तू ऐसी ख्वाहिश, कि न कर उसकी फरमाईश।
यूँ कर तू ऐसी ख्वाहिश, कि न कर उसकी फरमाईश।

है जिस दरगाह की तलाश मे तू दर-बदर,
पा लेगा उसे बस कर थोङा सबर।
यूँ तो लाखों तमन्नाएँ है अधूरी,
थोङा तो दम लगा कर दिखा पूरी।।

चाहे तू दूनियाँ, ये है तेरी हसरत,
पाने को है कुछ खोना, तो खो आपनी नफरत।
हो राजा की ख्वाहिशें, या रंक की तमन्ना,
अपनी-अपनी अदा से, सभी ने है बुना।।

तू ना सोच क्या तेरा, क्या तूझसे,
तोङ दे हर हद-सरहद, अपनी जुस्तजू से।
उस मेहताब की ही तरह कर, अपने इश्क की नुमाईश,
ना कर अपने ख्वाहिश की फरमाइश, छीन ले, ये है तेरी जागीर पैदाइश।।

बस कुछ ऐसी हो तेरी ख्वाहिश, न कर फरमाइश।
बस यही हो तेरी ख्वाहिश, बस यही हो तेरी ख्वाहिश,।।

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