गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

नये पुस्तें नये सिख

लाल रंग के एक गुलाब
किसीकी हाथमे थमाती
खुसी- खुसी देते अपनी जुवां
किसीकी जिगरसे निकाली
अपने आपको भी भुलाती
गुलाब मरती चली रही थी
अंतिम पलकी पलकें झपकती
बची सासें सुवासको छोडके
किस सोचमें डूब गये वो जानें
गुलाबके पत्र चूंडनें लगती
ये क्या है प्रेम दिवस या अप्रैल फूल
युवायुवतीयों के लिये मस्तिके दिन
परिजनोंमें भूंचालसा छा गयी दिन
नये पुस्तें नये सिख
पुरानें पुस्तें देखते रह गये
शादीसे पहले प्रेम करती तब
शादीके बाद प्रेम करती अब
प्रेम होती दो दिलके संग
जीवनके नाव के डोर अपने हाथ लिये
परिवारसे दूर अपने सपनेमें पंख लगाते
जीवनके पड़ावके मायने समझी जब
हाथ लगी सिर्फ अप्रैल फूल तब |१|
०२/१२/२०१५
राम शरण महर्जन
काठमांडू, नेपाल

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