शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

!! है कहां मेरा बिहार!!

एक खूबसूरत सा था राज्य मेरा,
जिसपर करता था देश नाज मेरा,
आज दो टुकड़ों में बटा पड़ा है,
एक पैरो पे डटा पड़ा है
देख के उसका यह बिखरा हाल
ढूंढता हु,
है कहा मेरा बिहार !!

न गंगा का निर्मल पानी,
नहीं उड़ती अब चुनर धानी,
न आती मिट्टी की खुसबू,
न बसंत बहार हवाएँ भी,!
नहीं दीखते वह खेत सुहानी,
न ढ़ेर अनाज की जैसे घानी
न बैलो का तान सुनाता,
न गाती गौराएँ भी,!!
बंद हो गई सहनाई बिस्मिलाह की,
और वीर कुँवर की भूमि बेहाल,
ढूंढता हु,
है कहा मेरा बिहार !!

नहीं होते अब वह खेल पुराने,
डंडा गुल्ली, चित्ते, फाने,
न बगीचे में शोर मचाना,
आम, महुआ और इमली खाना,
न खेतों में वह साग सुहाने,
केराव बूंट और मटर के दाने,
और ना अब वहां खेतो में जाना,
खलिहानों में धान कटाना
निकल गए हम यूँ घरों से,
छोड़ के अपनी भूमि को खस्ता हाल,
ढूंढता हु,
है कहा मेरा बिहार !!

ना रहे वो प्यारे मीठे बोल ,
जिसमे थे मिश्री जैसे घोल,
था कभी वो बना नंबर वन,
आज बसा है बस जंगल जंगल बन,
है बदनाम होती हर रोज,
किसी नई कहानी से !
लालू, नितीश, पासवान,
तो कभी माझी की वाणी से, !!
अधमरा सा पड़ा हुआ है,
होकर खुद से कही लाचार,
ढूंढता हु,
है कहा मेरा बिहार !!

अमोद ओझा (रागी)

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