कोए और इन्सान
  शहर के मुख्य मार्ग पर
  भीड थी उस समय हजारों में।
  उसी समय एक उडता कौआ
  उलझ गया विधुत की तारों में।
  कुछ देर फडफडाता रहा
  वो कौआ नादान।
  चंद पल तडपने के बाद
  उड गए उस के प्राण।
  देखते ही देखते कर्इ कौओं से
  भर गया पूरा अकाश।
  हर किसी ने जा कर देखा
  अपने मरे साथी के पास।
  जोर जोर से कांय कांय
  करने लगे वो अलाप।
  शायद उस साथी की मौत पर
  कर रहे थे करूण विलाप।
  उसी समय एक वाहन ने
  एक राहगीर को कुचल दिया।
  अगले ही पल वो वाहन वाला
  अपने पथ पर दुत्रगति से चल दिया।
  टक्कर खाकर वो राहगीर
  गिर गया मार्ग के किनारे।
  एक पल में ही बिखर गए
  जितने थे वहां इन्सान सारे।
  दर्द से वो तडपता रहा
  किसी ने दिया ना उसे सहारा।
  आखिर में जंग हार गया
  मौत से लडता वो बेचारा।
  पडा रहा वो कितनी देर
  कोर्इ भी उस के पास न आया।
  उस इन्सान की मौत पर
  किसी इन्सान ने आंसू न वहाया।
  अभी तक भी आसमान मे कौए
  अपने साथी के लिए आंसू वहाते रहे।
  देखकर एक इन्सान की लाश को
  इन्सान अपनी नजरें चुराते रहे।
  इन्सानों से कौए अच्छे
  जो इतना अपनापन दिखाते हैं।
  जिसे अपनों के बिछुडने का गम न हो
  वो किस बात पे इन्सान कहलाते हैं।
  किस बात पे महान कहलाते हैं।
  जय हिन्द
बुधवार, 11 फ़रवरी 2015
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