सिहर उठता हु आज भी तुम्हारे अहसास से ,
  गुजरता हु जब भी तुम्हारे आसपास से
  वफ़ा की उम्मीद तो हमे खुद से नहीं थी ,
  क्यों बेवफाई का ये कारनामा तुमने किया
  तुम्हे खो देने का डर तो मन में था ,
  इस डर को यकीन में तुमने बदल दिया
  क्या गुस्ताखी हुई थी मुझसे ,
  जो तुमने मुझे धोखा दिया
  खिलखिलाती सी तबुस्सम के कायल तो हजारो थे ,
  इजहार का मायदा तो हमने ही किया
  हमने अपनी आँखों से देखी थी अपनी तबाही ,
  ज़माने ने तुम्हारी बेवफाई भी सराही
  मगरूर से इस ज़माने की बातो में आकर ,
  क्यों तुमने हमको दगा दे दिया !!!!!!!!!
गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015
तबुस्सम
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