अल्हड़ मेरी जीवन-शैली
  हे शिव देखो ज्ञान मेरा,
  मुफ्त नहीं मैं माँग रहा हूँ
  कब दोगे वरदान मेरा?
  धूप,दीपकी ज्योति जला दी
  वायु में घ्रत घोल भंडार,
  आम लकड़ियां चंदन लकड़ी
  शुद्धि पंड़ित मंत्र उचार,
  कहो नासिका-तंत्र रखेगा
  आजीवन कब मान मेरा?
  मुफ्त नहीं मैं—–॥
  वस्त्रदान के लिए किया था
  कब मैंने यह हवन विशाल?
  श्रीहरि के भोग मिलावट
  तुलसी पत्तों की टकसाल,
  रखे गले की क्रियाओं को
  क्या यह संतुष्ट दान मेरा?
  मुफ्त नहीं मैं—-॥
  होगी वायु शुद्ध नासिका
  शुद्ध रसोई का रसपान,
  रोगों के उन दुष्ट कीटाणु
  को डस लेगा हवन-प्रमाण,
  विद्वानों की नीति विभूषित
  नतमस्तक अभिमान मेरा,
  मुफ्त नहीं मैं—-॥
  जाति-पांति अरु द्वेषरहित
  ना यह छूत-अछूत करे,
  संग शुद्धि के रहें संचालित
  विद्वान ब्राह्मण ब्रह्म करें,
  लग जाएगा ठीक निशाने
  बोलो कब संधान मेरा?
  मुफ्त नहीं मैं—-॥  
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015
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