सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

प्रेम

प्रेम त्याग है , प्रेम तपस्या
प्रेम है जीवन का आधार l
प्रेम से कोई काम करो तो
हो जायेगा वो साकार ll

प्रेम बिना सब सुना-सुना
प्यार कहीं , न रह पायेगा l
बिन प्यार के इस जीवन में
जीना दुर्भर हो जायेगा ll

प्रेम बिना ये रिश्तों की डोरी
बांध नहीं , अपनों को पाएंगी
ईर्ष्या और घर्णा की भावना
चारो तरफ छा जाएँगी ll

प्रेम वो जादू की झप्पी है
पराये भी अपने बन जाते है l
जीवन के इस चक्र को पूरा
करने में साथ निभाते है ll

बिन प्रेम के ईश्वर भी इस
दुनिया की रचना न कर पाते l
आज अगर ये दुनिया न होती तो
हम ये कविता कैसे लिख पाते ?

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