शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

मैं याद आऊंगा

आज एक टिमटिमाता दिया हु
जगमगाते सितारों की भीड़ में
कल पसरेगा अँधेरा चारो दिशा
पाओगे खुद को तन्हा छीड़ में
रोओगे खड़े अकेले तब मैं याद आऊंगा !!

मशगूल हुए बहुत इस कदर
विलासिता की जिंदगी जीने में
ताउम्र चले राह दिखावे की
लगे रहे मुखौटो को जुटाने में
झाँकोगे गिरेबां में जिस दिन, मैं याद आऊंगा !!

वो अक्सर करते रहे जिक्र
भरते रहे दम खुद की खुद्दारी का
लिया जख्म अपने सर पर
चंद सिक्को के लिए बेईमानी का
गर्दन झुक जाएगी उस दिन मैं याद आऊंगा !!

कद्र न की आज हमारी न सही
वक़्त का पहिया है चलता जाएगा
पाओगे खुद को रोता एक दिन
नजरो के सामने जहाँ लुटता जाएगा
थककर आँख जब सो जाएंगी, मैं याद आऊंगा !!

नसीब से मिलता है सब कुछ
चाहे कोई चीज़ समझकर गवा देना
बामुश्किल से मिलता है जीवन
कही जीने का अंदांज न गवा देना
फिर ढूँढोगे ये अंदाज कही जब, मै याद आऊंगा !!

शब्द चुनचुन कर नित जाल बुनू
कुछ विरह वेदना कुछ मिलन का प्यार लिखू
बे वजह रुठने की इस आदत को
तेरी ख़ुशी या किसी को पाने की दरकार लिखू
रह जाओगे इस उलझन में एक दिन
कुछ न समझ आएगा जब, मै याद आऊंगा !!
!
!
!
!
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डी. के. निवातियाँ _________@@@

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