शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

ओस कण

अरसे से उठते बादल
आकाश को थे घेरे,
तड़प उठे हो पुलकित
छुआ हवा ने क्यूं कर?

डर है बरस ना जाएं –
सूना गगन हो जाए,
संजोए मोतियों को
छलका दिया है क्यूं कर?

सहेज लो इन्हें तुम –
सम्भाल लो इन्हें तुम –
अरसे से बढ़ते धन को
लुटा रहे हो क्यूं कर?

यह घटा नहीं – है मन्दिर
धारा नहीं -है पूजा
पूजा अभी अधूरी
खोलूं मैं द्वार क्यूं कर?

_______ बिमल
(बिमला ढिल्लन)

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