बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

शैतान यूं शिकार पर-गजल-शिवचरण दास

शैतान यूं शिकार पर आयेगें बार बार
चेहरे नये उधार के लायेगें बार बार.

बहुत मासूम हैं कलियां बहल जायेगीं
कसमें वो झूंठे प्यार की खायेगें बार बार.

दिल में फरेब गहरा लब पर रहीम राम
सत्ता की मसनदें सब पायेगें बार बार.

जिनके लिये हमारा लहू ही शराब है
मुद्दे वही सुधार के गायेगें बार बार.

उनकी हंसी के पीछे भी गहरी चाल है.
पैगाम वो तबाही का लायेगें बार बार.

सजदा किया उसे तो बन गया सिकन्दर
मर दास बस मसीहा जायेगें बार बार.

शिवचरण दास

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here शैतान यूं शिकार पर-गजल-शिवचरण दास

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें