इस गुमनाम भीड़ मे हर शक्स गुमनाम होता चल गया,
  अकेले रह गये तन्हा किसी उम्मीद मे,
  इस उम्मीद मे वक्त चलता चला गया।
  मिले कई शक्स कई मोड पर ऐसे,लगा कि
  ज़िंदगी मे कुछ अपना सा मिल गया,
  हर शक्स अपना कुछ वक्त गुजार कर कुछ अपना
  सा बना कर चला गया।
  आये कई मोड ज़िंदगी मे ऐसे लगा कि किस काम
  की ये ऐसी ज़िंदगी,
  पर मिला कोई शक्स ऐसा जो जिन्दगी क कुछ मतलब बता कर चला गया।
  हर रोज नया सा मिला कोई ऐसा जो अंजानी सी बातोंसे रूबरु करा कर चला गया,
  ये सिलसिला कब थमेगा,यही सोच कर दिल उदास बैठा
  फिर आया कोई शक्सऔर फ़िर से ये उम्मीद लगाबैठा,
  अकेला सा तन्हा इस भीड़ मे एक चेहरा उदास बैठा
  मिल जाये कोई सच्चा हमसफर इस ख्वाइश मे एक नयी उम्मीद लगा बैठा।
  shubham chamola
  dehradun
   9897286105
  Schamola@ymail.com
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015
इस गुमनाम भीड़ मे हर शक्स गुमनाम होता चल गया,
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