“नन्हीं पुकार”
  एक सुबह हुई,लेकिन अंधकार के साथ,
  जब गूंजी थी किलकारी प्यारे से शोर के साथ,
  बुझ गया चिराग हवा के झोके के साथ,
  वो दो पल ही मैंने जन्म लिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है !
थी आशा की किरण माँ को,
  अपना दिल बहलाने को,
  सुन्नी कोख के रंगीन बन जाने को,
  हे भगवान कैसा ये जन्म दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है !
शांत हो गई हवा भी बहना,
  माँ की साँस भी मंद मंद बह जाने को,
  धड़कन भी रुक गई थी,अगले पल नही आने को,
  फिर क्यों मुझे बेजान किया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है !
ये कैसा जन्म हुआ,
  जो षण में ही खत्म हुआ,
  खेल खेल गया खुदा भी,
  भेजकर अमृत,पिला जहर दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है,
जीवन तो खत्म हो गया मेरा,
  फिर क्या एक दिन तो जाना ही था,
  पर ये क्या हुआ,
  गंदे नाले में मुझे डाल दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है !
बन गई गंदे नाले जैसी सोच,
  ‘सवना’ भी ये आज जान गया है,
  दुश्मनो की क्या जरूरत,जब अपनों ने ही ऐसा काम किया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है,
  हाय पापा ने मुझे मार दिया है ! 

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें