गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

चहकती कलम

सुबह होती है तो चिड़िया चहकती है,
एक नए सवेरे का बिगुल बजाती है,
लिए उड़ार मतवाली,चोगा चुगने चली है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

किस में उन नादान परिंदो को देख कर हिम्मत जगी है,
जिसे चोगे की तलाश में न जाने कहा तक जाना होता है,
न कोई रास्ता है न कोई गली है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

कौन कहता है के बेजान है कलम,
जब चलती है तो,
कटघरे में खड़े मुजरिम को भी हिला देती है,
ये देख एक बेगुनाह के दिल में नई उम्मीद जगी है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

एक किसान से पूछो,जब कलम चली है,
एक साहूकार से पूछो जिनकी बही आग में जली है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

फर्क नही है रंग में यहा,
क्या लाल,क्या नीली और क्या काली है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

क्या दिन और क्या रात,
जब चलाया तब जगी है,
उड़कर,नए पंख लिए,
उमीदों के सफर में चली है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

न साथ की उम्मीद है इसे,
न बेईमान की,न साहूकार की,
ये तो बिन खाए ही पली है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

ऐसे चलाओ इसे की,
एक कर्जदार कर्ज से मुक्त हो जाये,
एक बेगुनाह की फांसी तक टली है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

न साथ लिए न आस लिए,
चल पड़ी है क्षितिज की और,
बस एक अपनेपन की दिललगी है,
जाग जाओ ऐ दुनिया वालो,
क्यूंकि अब कलम चहकने लगी है !

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