शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

यादें

यादें रह जाती हैं,
कभी जगमग तो कभी मद्धम
कुछ चेहरे अधूरे से,
क्यों दिन रात पीछा करते हैं
ओस में भीगे हुए,
सोच कर चलते नही
राह में कभी मिलते नही
खोजते रहते हैं,
दोनो ही उम्र भर
राख में लिपटी हुई,
अस्तित्व की वो उलझनें
शायद कभी मिल जाए,
यूँ ही सलवटों के दरमियाँ
और

सपनो में मिले तो क्या मिले
आईने में तो कभी देखा नही…..

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