सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

वक्त नहीं चलता-शिवचरण दास

वक्त नहीं चलता इन्सान गुजरता है
इन्सान समझता है वक्त गुजरता है.

जितना भी चढे सूरज आकाश के सीने पर
सुबहा निकलता है पर शाम को ढलता है.

मेरा ना हुआ कोई अफसोस नहीं इसका
अपना ना कहे कोई बस ये ही अखरता है.

है सदियों से रहा पागल यह सारा जमाना
ता उम्र गुनाहों की ही घाटी मे भटकता है.

कोई ना रखा बाकी उपचार दवाओं का
जितना भी रखा मरहम दर्द ही बढता है.

लहरों पै लगाता है दिन रात का पहरा जो
अफसोस यहां वो ही पानी को तरसता है .

प्यार का हमराही उस मोम का पुतला है
सर्दी में पिघलता है और आग में जमता है.

मुश्किल है बहुत माना जुर्म से भिड जाना
इन्सान मगर तपकर कुन्दन सा निखरता है.

अब झूंठ का दुनियां मे है दास खुला ज्ञापन
बेहाल हुआ सच तो लोगो को अखरता है.

शिवचरण दास

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