मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

सम्हल जाओ।

भरी महफ़िल में जब कोई
किसी को इल्जाम देता है।

सोचता ये नही की क्या गुजरेगी
जब किसी का नाम लेता है।

उसी महफ़िल में उसे बदनाम
जब कोई और कर जाए।

चेहरे की रंगत बदल जाए,जुबां
पर दिल का दर्द आ जाये।

जब किसी का मजाक उड़ाते हो
तो मजा उस वक़्त आता है।

मगर ये क्यूँ भूल जाते हो की
हर किसी का वक़्त आता है।

कभी अपने पर जो गुजरे
तो बुरा मान जाते हो।

महसूस करके देखो क्यूँ
किसी का दिल दुखाते हो।

किसी की ख़ामोशी से न
तुम दिल को बहलाओ।

पल रही आग दिल में
कहीं ऐसा न हो,जल जाओ।

अपनी शख्शियत पर न
इतना गुमान अच्छा है।

सब उसके बन्दे हैं
जरा सोचो सम्हल जाओ।

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