शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

बन कोयल तुम

अजुलि लेकर यादो कि
तुम बन्द पलको सग
आ जाओ

लेकर लटों का घना
खजाना कज़रारे नयन
दिखा जाओ

मृणालिका सी नाज़ुक
सजल होकर
प्यास बुझा जाओ

तम हो ,ताम हो या
तपती तपिश
होठों से ओश
पिला जाओ

इन्द्रधनुष सतरंगा
दामन ले प्रभात सा
मुख आ जाओ

सर्द रात में
कुड़ता है गात
रेशम सा हाथ
छुआ जाओ

नील नदी की
बहती धारा
कुछ देर वक़्त
बिता जाओ

घर के द्वारे एक
महुआ का पेड़
बन कोयल तुम
कुछ गा जाओ

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