भालू सेठ लाठी लेकर निकले जंगल की सैर
  डरकर भागे सारे पंछी बोले अब न होगी खैर
रास्ते में खेल रही थी बंदरो की एक टोली
  खेल रहे थे गिल्ली डंडा पहन सर पे टोपी 
रुक कर देखने लगे एक कोने से भालू सेठ
  जोर से उछली गिल्ली अटकी भालू के पेट
डंडा लेकर भालू भागा मारूंगा सबको साथ
  बंदर सारे पेड़ पे लटके कोई न आया हाथ
तभी उधर से सूंड हिलाते हाथी राजा गुजरे
  ये बताओ भालू बेटा कैसे हो यंहा तुम पसरे
पेट पकड़कर भालू बोला लगी पेट पर चोट
  जल्दी से करो इलाज़ वरना यही जाऊ लोट 
इतना सुनकर पेड़ पे बैठा कौआ चिल्लाया
  बहाने करता भालू सेठ इसने मुर्ख बनाया 
क्या हुआ था मैंने देखा तुम्हे सुनाता आज
  बंदर खेल रहे थे गिल्ली आया न इन्हे रास 
झूठमूठ बहाना बनाकर उनको इसने भगाया
  गिल्ली थी पेड़ पे अटकी ये देखो मै इसे लाया 
सुनकर कहानी हाथी राजा भालू पर जो बरसे
  शर्म करो तुम्हारे कारन बन्दर खेल को तरसे 
कान पकड़कर माफ़ी मांगो नहीं सताओगे बच्चे
  सदा सत्य राह पे चलना तब कहलाओगे अच्छे
  !
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  डी. के. निवातियाँ__________@@@

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