कहाँ जाएँ ,किस् से कहें व्यथा अपने अंतर्मन की
  इधर देखें ,उधर  देखें ,या चाहे जिधर देखें
  हर तन परेशान ,हर मन परेशान
  कुछ सूझता नहीं ,कुछ दीखता नहीं
  कहानी एक सी है जन – जन की
          सुबह  देखो तो परेशान ,शाम देखो तो परेशान
          रात सोने की जो होती ,उसमे भी हैं नींद कहाँ
          भागमभाग की जिंदगी  ये, मशीन  सी हालत  है तन की
          आत्मा है झकझोरता ,पर  तन न  सुनता है मन की
          पापी पेट का तूफान  ये कैसा,तन बहा  है संग पवन की
  चाहता हूँ  आराम कर लूँ  घडी दो  घडी विश्राम  कर लूँ
  आती  है ज्यूँ झपकियाँ , झकझोर देती भूख तन की
  हड़बड़ा के फिर उठ मैं जाता, सुनता नहीं मैं नींद की भी
  तन भी हारे , मन भी रूठे, भागता हूँ  पेट खातिर
  कहाँ जाएँ ,किस् से कहें व्यथा अपने अंतर्मन की
         अभय कुमार आनंद
          बिष्णुपुर बांका
           बिहार 
बुधवार, 11 फ़रवरी 2015
कहाँ जाएँ ,किस् से कहें व्यथा अपने अंतर्मन की
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