शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

ज़ख़्मी मैं और तूँ

मुझमें “मैँ” ढूंढ रही हूँ मैँ अगर
तो तुझ में तू भी कहाँ अब बाकी रहा होगा
यकीं है मुझको सारा जहान है तेरे पास
मगर कोई हमसा भी नहीं मिला होगा

जला डाली तस्वीरें सारी उसने जला डाले ख़त मेरे
गुज़रे थे साथ -साथ जिनसे उन रास्तों का उसने
क्या किया होगा????

सुना है आज कल कहता है बहुत सकूं में हूँ मैँ
मगर याद नहीं उसको कितनों को उसने बेसकूं
किया होगा

किसी ने कहा अब वो पहले सा नही रहा
मैने कहा कोई बड़ी बात नही, रुख हवाओँ ने ज़रा बदला तो वो भी बदल गया होगा

खबर है अब तो घर की दीवारेँ भी ऊँची करली उसने
हो न हो उसकी बेटी ने कदम जवानी में रखा होगा

मुझमें “मैं” ढूंढ रही हूँ मैं अगर
तुझमे तू भी कहा अब बाकी रहा होगा……..
नवप्रीत

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