इस छोटी साइ जिन्दगी मे बहुत कुछ बदलते देखा है,
  खुशीमे रोते हुए लोगों को देखा है
  दूसरों की खुशी को देख दुखी होते लोगों को देखा है
  थोडे से लालच के लिये ईमान बेचते लोगों को देखा है
  मा की ममता को लाचार होते हुए देखा है
  इंसानियत को शर्मसार होते हुए देखा है
  दोस्ती की मिठास मे पनपती ईर्ष्या को देख है
  यद्यपि नही हुआ धरा पर समय मुझे ज्यादा
  किंतु प्रकृति को कहर बरपाते देखा है
  एक इंसान का दूसरे इंसान से भरोसा टूटते हुए देखा है
  मानता हूँ मै बदलाव नियम है प्रकृति का
  किंतु यहाँ तो प्रकृति को बदलते इंसानो को देखा है
  आखिर कब खत्म होगा ये सिलसिला बदलने का,
  इस आशा मि बदलते संसार को देखा है .
  शुभम चमोला
  schamola50@gmail.com
रविवार, 22 फ़रवरी 2015
बहुत कुछ देखा है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें