भावनाओं को रूप देने हेतू
तूलिका में रंग भरता हूं ,
अभिव्यक्ति की आडी़ तिरछी रेखाएं खींच ,
पीछे हट , आलोचक बन
दृष्टि डालता हूं – तो
क्या पाता हूं-
कि वे रंग जिन्हे
साकार करने की चाह थी
लगभग अदृष्य हैं
और आकृतियां ?
आकृतियां केवल अंकों में बन्धी
कल्पनाएं हैं – कुछ आंकडे़ हैं –
इन में कुछ पर क्रास लगा है –
कुछ पर प्रश्नचिन्ह –
इन्ही आंकडों के जमा घटाव में
कला घुट गई है-
और ये आंकडे हैं – जो
पट पर छाए जा रहे हैं !
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