बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

ओस कण

अरसे से उठते बादल
आकाश को थे घेरे
तड़प उठे हो पुलकित
छुआ हवा ने क्यूं कर ?

डर है बरस ना जाए
सूना गगन हो जाए
संजोए मोतिओं को
चमका दिया है क्यूं कर?

सहेज लो इन्हें तुम
सम्भाल लो इन्हें तुम
अरसे से बढ़ते धन को
लुटा रहे हो क्यूं कर ?

यह घटा नही – है मन्दिर
धारा नहीं -है पूजा
पूजा अभी अधूरी
खोलूं मैं द्वार क्यूं कर?

—– बिमल
(बिमला ढिल्लन)

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