अरसे से उठते बादल
  आकाश को थे घेरे
  तड़प उठे हो पुलकित
  छुआ हवा ने क्यूं कर ?
डर है बरस ना जाए
  सूना गगन हो जाए
  संजोए मोतिओं को
  चमका दिया है क्यूं कर?
सहेज लो इन्हें तुम
  सम्भाल लो इन्हें तुम
  अरसे से बढ़ते धन को
  लुटा रहे हो क्यूं कर ?
यह घटा नही – है मन्दिर
  धारा नहीं -है पूजा
  पूजा अभी अधूरी
  खोलूं मैं द्वार क्यूं कर?
     —– बिमल
         (बिमला ढिल्लन) 

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