युद्धवीर कहलाया जाए…
  ऐसा स्वप्न ना देखा मैने…
  अश्रुनीर बहाया जाए…
  ऐसा मित्र ना बनाया मैने…
  सूतपुत्र था वही रहूँगा…
  भले राजभोग लिखा हो…
  दुर्योधन का मान रखूँगा…
  भले मृत्युयोग लिखा हो…
  माधव कहते ये कौरव छल है…
  पांडवों की जीत अटल है…
  जनता हूँ कथन सत्य है…पर…
  ये श्वास भी वचन बध्य हैं…
  माँ कुंती का रुदन देखा…
  पांडवों के लिए वचन माँगा…
  कहती हैं सब भ्रात तुम्हारे…
  जैसे मेरे तुम वैसे ये सारे…
  क्षमा देना वीर धर्म है…पर
  युद्ध भी मेरा कर्म है…
  भले एक कोख से सब हम…पर…
  युद्धभूमि में रिपु अब हम…
  चलो क्षमा किया चारो को…
  पर एक को ना कर पाऊँगा…
  रखूँगा शेष अपने वारो को…के…
  अर्जुन को पाठ पर पढ़ाऊँगा…
  स्वयं को श्रैशठतम कहता है…
  अहेम मन ही मन रखता है…
  देखूँगा कितना बड़ा धनुर्धर…
  और कितना वो आत्मनिर्भर…
  कहते हैं वो के दुर्योधन नीच है…फिर…
  क्यूँ ना लाते वो प्रसंग बीच में…के…
  जब पांडवों ने उपहास बनाया…
  सूतपुत्र कह नीचा दिखाया…
  तब कहाँ थे ये प्रिय पांडव भ्राता…
  वासुदेव को अब ना मैं समझ पाता…
  दुर्योधन ही जब था मेरा सखा…
  मान जिसने सहृदय मेरा रखा…
  अब जब युद्ध की बेला है….
  हर वार हृदय पर झेला है…
  अर्जुन को माधव का साथ है…पर…
  कर्ण यहाँ अडिग अकेला है…
  कवच कुंडल भी दान किए सब….
  माधव चल गये चाल भी अब…
  कहते हैं श्रैशठ दानवीर तुम…
  पर यकायक अर्जुन कहीं गुम…
  समझ पाऊँ जो छल उसके…
  समय उतना शेष नही अब…
  तीर निकले हैं धनुष से उसके…
  भेद चुके मन और देह भी अब….
  चहुन और अब शांति है…
  युद्ध की फैली कांति है…
  अब की जब मैं थक चुका हूँ…
  रक्त रंजित हो चुका हूँ…
  माधव निकट आए हैं…
  अश्रु नेत्र भर लाए हैं…
  कहते हैं हे युद्धवीर…
  और कहते हे दानवीर…
  युगो युगो तक स्मरण रहेगा
  कर्ण नाम अचल अडिग रहेगा…
  अंग देश के नरेश का…
  वैभव सदैव अविस्मरणीय रहेगा….
गुरुवार, 19 मार्च 2015
युद्धवीर
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