जबसे आया हूँ जहाँ में तेरे आँचल में हूँ माँ मैं।
  पहले साड़ी का किनारा अब दुआओं की छाँव में।
जब मैं डगमग,डगमग चलता लाख बलाएँ लेती थी।
  और कभी मैं गिर के रो दूँ तो बाहों में भर लेती थी।
  कभी जो रूठूँ तो माँ मुझे बड़े जतन से मनाती थी।
  गोद में बिठा के मुझको परियों की कथा सुनाती थी।
जबसे होश सम्हाला मैंने तेरे आँचल में हूँ माँ में।
  पहले साड़ी का किनारा अब दुआओं की छाँव में।
मेरी गलती को छिपा के पापा से मुझे बचाती थी।
  और कभी जो मुझको डांटे,भूखे ही सो जाती थी।
  अपनी ममता के साये में वो मुझको रोज पढ़ाती थी।
  एक दिन सफल इंसान बनूँ मैं मेरी माँ ये चाहती थी।
जब घर से निकला हूँ मैं तेरे आँचल में हूँ माँ में।
  पहले साड़ी का किनारा अब दुआओं की छाँव में।
बेबस हो आज दूर हूँ तुझसे,हूँ मजबूर मेरी माँ मैं।
  इन्तजार करना आऊंगा लौट कर जरूर मेरी माँ मैं।
  तेरे हर सपने को ही पूरा करने निकला हूँ घर से
  वरना तेरे आँचल के सिवा जाऊं तो जाऊं कहाँ मैं।
जबसे आया हूँ जहाँ में तेरे आँचल में हूँ माँ मैं।
  पहले साड़ी का किनारा अब दुआओं की छाँव में।

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