स्वाभिमान,सम्मान की खातिर
  न्यौछावर निज प्राण किये।
  थे देश के अमर सपूत वो
  बिन स्वार्थ ये अनुदान किये।
काँटों पर चलकर कर दिए
  पुष्प समर्पित माँ के चरणों में।
  धन्य हो गई धनवान धरा
  वो तनिक नहीं अभिमान किये।
होंठो से जब चूमा फंदे को
  फंदा विलाप करने लगा।
  हंसकर बोले चुप हो जा तू
  क्रांति से पैदा कितने जवान किये।
जन-जन में हम जीवित हैं
  फंदा डाल गले में झूल गए।
  इंक़लाब जिंदाबाद रहे जुबाँ पर
  जाते-जाते यही आह्वान किये।
भगत,देव और राजगुरु के
  सम देशभक्त अविस्मरणीय हैं।
  स्वप्न सलोने,बचपन की यादें
  प्रेम,जवानी भी कुर्बान किये।
स्वाभिमान,सम्मान की खातिर
  न्यौछावर निज प्राण किये।
  थे देश के अमर सपूत वो
  बिन स्वार्थ ये अनुदान किये।

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