गुरुवार, 12 मार्च 2015

जाग जाए जो जवानी

रक्त पिपाशु ईच्छाएं
पाल रहा है इंसान
भौतिकता की भट्टी में
पिस रहा है ये जहाँ

अंधी दौड़ शिक्षा की
ज्ञानी घूम रहे अंजान
किताबें चेहरे लगाकर
करते है नींद हराम

भटकता है गौरा बदन
नशा करते हुए जवान
टेढ़ी सभ्यता हो गयी
बत्तमीज हो गई जबान

उद्दंडता बनी आधुनिकता
सिर चढ़ रहा है अभिमान
घुटन हो रही बहुत भीड़ में
अकेला डर रहा है इंसान

मोहब्बत हुई सिक्कों से
अपने अपने तीर कमान
राख के ढेर पर रखी
दिशा जीवन लहूलुहान

कोई जवानी को समझाए
ये जीवन का अहम मुकाम
जाग जाए जो जवानी
जाग जाएगा हिन्दुस्तान

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