रक्त पिपाशु ईच्छाएं
  पाल रहा है इंसान
  भौतिकता की भट्टी में
  पिस रहा है ये जहाँ 
अंधी दौड़ शिक्षा की
  ज्ञानी घूम रहे अंजान
  किताबें चेहरे लगाकर
  करते है नींद हराम 
भटकता है गौरा बदन
  नशा करते हुए जवान
  टेढ़ी सभ्यता हो गयी
  बत्तमीज हो गई जबान 
उद्दंडता बनी आधुनिकता
  सिर चढ़ रहा है अभिमान
  घुटन हो रही बहुत भीड़ में
  अकेला डर रहा है इंसान     
मोहब्बत हुई सिक्कों से
  अपने अपने तीर कमान
  राख के ढेर पर रखी
  दिशा जीवन लहूलुहान 
कोई जवानी को समझाए
  ये जीवन का अहम मुकाम
  जाग जाए जो जवानी
  जाग जाएगा हिन्दुस्तान 

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें