मंगलवार, 10 मार्च 2015

संजीव

तेरे नैनों की मयूखैं देख मैनु
कहत न बनियाँ
तेरे जैसा न इस तिहूँ भुवनियाँ
तेरी बात गुंजती मेरी
कर्णकुहर में
तेरी याद घुमती मेरी
अंतर्गुहावासों में
तु हँसती है तो लगता
पतझर है
तु रोती है तो लगता
सावन है
तेरा यह श्याम तन
तेरी यह काली आँखें
जिसे देख मेरा मन
करता है खुद से बातें
कभी तु देखता कलकि
रूप से
कभी तु देखता निरभ
रूप से
तेरे नैनों की मयूखैं देख मैनु
कहत न बनियाँ
तेरे जैसा न इस तिहूँ भुवनियाँ ।।

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