ये अंतर्मन के घावों को शब्दों से सहलाती है ,
  हृदय -विवेक द्वन्द में ये निर्णायक बन जाती है,
  किसी और की पीड़ा भी जब अपने ऊपर लगती है ,
  जब भरे शहर की सड़कें भी वीरानी सूनी होती है,
  जब तन में , मन में, सिरहन दौड़े कोई जगह ना पाती है ,
  भावना मसि  हो जाती है , कागज को रंग जाती है .
  मै  सरस्वती की बेटी का वो सबसे छोटा बेटा हूँ
  जिसको खुद कविता आकर सपनों से सुबह जगाती है
  मै कब कविता कहता हूँ ,ये खुद ही तो बन जाती है .
नवयुवती के अधरों का पहला सकुचाया चुम्बन बन जाती है ,
  स्वर्णिम राजमुकुट के कंचन सी ,बैठ भाल पर इतराती है ,
  जब मैं खुद से बेसुध होता और निराशा छाती है ,
  जब सच्चे वैरागी सी , ये ही तो अलख जगाती है ,
  जब चारों और अँधेरा बाहर-  भीतर हो घनघोर चढ़ा
  उषा के  नभ तल पर यही तो रवि रश्मि बिखराती है ,
  मै सरस्वती की बेटी का वो सबसे छोटा बेटा हूँ
  जिसको खुद कविता आकर सपनों से सुबह जगाती है
  मै कब कविता कहता हूँ ,ये खुद ही तो बन जाती है .

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