सोमवार, 23 मार्च 2015

खंजर दिल उतरता है

तिजोरियां भी आजकल
बहुत छोटी होने लगी
छुपाने के लिए बैचैन
क्या क्या भरता फिरता है

नियत और तृषणंगी है
की पूरी होती नहीं
बड़ा भूखा है हैवान
बिन चबाये ही निगलता है

हैरान हूँ बहुत इतनी
मासूमियत देख कर
जाने एक इंशान कैसे
इतने रंग बदलता है

अब तक काबिज हूँ
खुदा का रहमों करम
सामने से वरना सीधे
खंजर दिल उतरता है

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