जब भवंरो की गुंजन में हो कलियों का गुणगान कोई।
  जब बसन्त ऋतु को समर्पित कर दे निज पहचान कोई।
  जब वर्षा की बूंदों से मिल धरा करे अभिमान कोई।
  जब समीर की मन्द लहर छेड़े मधुरिम सी तान कोई।
जब किसी से मिलने को कोई सात समन्दर पार है।
  तो समझो हॄदय की हार है,ये पावन प्रेम पुकार है।
जब चुपके से पलकों में आये छुप जाये मेहमान कोई।
  जब ख्वाबों के गलियारे में शामिल हो अरमान कोई।
  जब याद किसी की होठों पे लेकर आये मुस्कान कोई।
  जब किसी की एक झलक यूँ लगे की है एहसान कोई।
जब दर्पण में कोई पल-पल करने लगे शृंगार है।
  तो समझो हॄदय की हार है,ये पावन प्रेम पुकार है।
जब हाथों की मेहँदी छिपाये कभी किसी का नाम कोई।
  जब किसी की नाम की खातिर हो जाए बदनाम कोई।
  जब पी कर आँखों के प्याले ठुकरा दे फिर जाम कोई।
  जब किसी को पाने की जिद हो,चाहे हो अंजाम कोई।
जब महफ़िल में मस्त मगन सब कोई यूँ बेक़रार है?
  तो समझो हॄदय की हार है,ये पावन प्रेम पुकार है।

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